औरंगाबाद के अंबा में अवस्थित सतबहिनी मंदिर बिहार की आस्था का केंद्र मानी जाती है, यह मंदिर औरंगाबाद से लगभग 18 किलोमीटर की दूरी पर उच्च विद्यालय चिल्हकी अंबा से दक्षिण मुख्य मार्ग पर मौजूद है.
सतबहिनी मंदिर को लोग सती माई मंदिर या सती स्थान के नाम से भी पुकारते हैं, ऐतिहासिक काल में यहां एक वटवृक्ष हुआ करता था इस वट वृक्ष के मूल में पूजा होती थी, जो भी यहां सच्चे मन से सतबहिनी मां की पूजा करता था उसकी सभी मनोकामना पूर्ण होती थी.
सतबहिनी मंदिर का इतिहास
स्थानीय लोगों के अनुसार यहां के मंडप में स्वर्णकार की पत्नी सती हो गई थी इसलिए लोग मां सतबहिनी मंदिर को सती स्थान के नाम से भी पुकारते हैं.
ऐतिहासिक काल में यहां एक वटवृक्ष हुआ करता था बताया जाता है यहां के जमींदार महाराजा बाबू के पुत्र चेचक से ग्रस्त गए थे और उनके आंखों की रोशनी खत्म हो गई थी तब जमींदार महाराजा बाबू ने इसी वटवृक्ष के नीचे अपने बेटे के स्वास्थ्य की मन्नत मांगी और उनका मन्नत पूरा हो गया इसके बाद जमींदार ने वट वृक्ष के नीचे सात देवी के पिंडों वाली मंदिर का निर्माण करवाया, कुछ साल पहले इसे भव्य मंदिर बना दिया गया.
सतबहिनी मंदिर क्यों प्रसिद्ध है
सावन माह में यहां पर भव्य मेले का आयोजन होता है जिसमें हजारों की संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं साथ ही नवरात्र में भी यहां पूजा अर्चना की जाती है और पूरे मंदिर को सजाई जाती है.