औरंगाबाद जिले के देव सूर्य मंदिर से 2 किलोमीटर के दूरी पर पातालगंगा में हर साल कार्तिक पूर्णिमा पर मेला लगता है, इस साल मेले में करीब एक लाख से भी ज्यादा श्रद्धालुओं ने पातालगंगा के तालाब में स्नान किया और अपनी मनोकामना पूर्ण होने की मन्नतें मांगी।
पौराणिक कथाओं के अनुसार पातालगंगा की निसंतान दंपतियों के लिए एक पवित्र स्थल माना जाता है कहा जाता है कि जिन विवाहित जोड़ों को शादी के बाद भी संतान नहीं होता वह विवाहित जोड़े पातालगंगा के सरोवर में स्नान करके मन्नतें मांगने और पूजा करने पर 1 साल के भीतर ही संतान की प्राप्ति हो जाती है. पातालगंगा में टोटल दो तालाब है एक तालाब को कुछ लोग बांझन तालाब के नाम से बुलाते हैं और दूसरी तालाब को चतुर्भुज तालाब के नाम से बुलाते हैं, जिनकी कोई संतान नहीं होती वह बंधन तालाब में स्नान करते हैं और बाकी लोग चतुर्भुज तालाब में स्नान करते हैं.
पातालगंगा कैसे पड़ा नाम ?
कथाओं के अनुसार आज से करीब 100 वर्ष पूर्व ज्ञानीनंद जी नाम के एक महात्मा देव सूर्य मंदिर के दर्शन करने आए हुए थे उनको यह जगह इतना भा गया कि उन्होंने पास में ही बम्होरी पहाड़ पर अपनी कुटिया बनाकर रहने लगे उनके यहां रहने से आसपास के लोगों का कल्याण होने लगा और सभी खुशहाल रहने लगे, लेकिन कुछ लोगों का कहना था कि महाराज जी आपको गंगा नदी के किनारे रहना चाहिए था, इतना ही सुनते ज्ञानीनंद महाराज ने अपने चिमटा को जमीन में गढ़ दिया और वहां पटल से गंगा प्रकट हो गई इसके बाद इस जगह का नाम पातालगंगा हो गया.